परवीन बाबी: पहचान से गुमनामी तक।
परवीन बाबी: पहचान से गुमनामी तक।
सत्तर के दशक की कुसुम सी अभिनेत्री जिन्होंने सिनेमा के पर्दे पर अपने अनुपम सौंदर्य और अनूठे अंदाज से शीर्ष अभिनेत्रियों में मुहर लगाई। उनका नाम था परवीन बाबी। परवीन का अर्थ तारों का समूह होता है और परवीन सचमुच नक्षत्र की तरह अपूर्व थी। जिनकी जिंदगी पुष्य नक्षत्र की तरह सौभाग्य, समृद्धि और विपुल सिद्धि से समूची थी लेकिन जिंदगी के मध्य पटल तक आते आते इस चांद पर एक ग्रहण भी था जो इसे दुर्भाग्य के आकाश में लुप्त कर देता है। उस सौंदर्य की बहती हुई निर्झरणी की अभिनय यात्रा बरखा और अग्नि का अतुल्य मिश्रण है।
परवीन का जन्म 4 एप्रिल 1954 जूनागढ़, गुजरात में हुआ था। उनके पिता का नाम वली मोहम्मद खान बाबी था और मां का नाम जमाल बख्ते बाबी था। उनके पिता जूनागढ़ नवाब के दीवान थे। शादी के चौदह साल बाद परवीन का जन्म हुआ। अभाग्य से जब वह पांच साल की थी तब उनके पिता का कर्करोग से देहांत हुआ। वह अपने मां बाप की इकलौती संतान थी। परवीन पश्तून जनजाति में खिलजी वंश से थी जिन्हे गुजरात के पठान भी कहा जाता था।
बचपन में वह शर्मीली और एकांतप्रिय थी। परवीन ने अपनी पढ़ाई अहमदाबाद के माउंट कार्मेल हाईस्कूल से की। आगे की पढ़ाई उन्होंने अहमदाबाद में सेंट जेवियर्स कॉलेज में की, जहां से उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में स्नातक किया।
परवीन ने 19 साल की उम्र में मॉडलिंग की शुरुवात की।
उन्होंने बॉलीवुड में अपने करियर की शुरुआत साल 1973 में आई फिल्म चरित्र से की थी। इस फिल्म के निर्देशक बी आर इशारा थे। इशारा जी के फिल्म शूटिंग
अहमदाबाद में शुरू थी, उसे देखने केलिए परवीन भी आई थी।
इशारा जी ने परवीन को देखा और अपनी अगली फिल्म 'चरित्र' केलिए बतौर मुख्य अभिनेत्री प्रस्ताव दिया। इस फिल्म में उनके सह कलाकार क्रिकेटर सलीम दुर्रानी थे। यह फिल्म कामयाब तो नही हुई परंतु इस फिल्म से परवीन को पहचान मिली।
मजबूर 1974 फिल्म में उनके नीला की भूमिका फिल्म समीक्षकों द्वारा सराई गई। अगली फिल्म 'दीवार' 1975 में अनिता नाम की वैश्या की भुमिका में अप्रतिम काम किया और हिंदी सिनेमा का प्रमुख चेहरा बन गई।
इसके बाद 'अमर अकबर ॲन्थनी' (1977), 'सुहाग' (1979),' काला पत्थर' (1979), 'द बर्निंग ट्रेन' (1980), 'शान' (1980), 'कालिया' (1981), 'नमक हलाल' (1982) जैसी सफल फिल्मों में अपने अभिनय का जादू दिखाया।
उन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ आठ फिल्मे की और सभी फिल्मे बेहद कामयाब रही। शशि कपूर के साथ काला सोना और फिरोज खान के साथ चांदी सोना में दिखी। धर्मेंद्र के साथ जानी दोस्त और रजिया सुल्तान, नसीरुद्दीन शाह के साथ यह नजदिकियान में में काम किया। उनकी आखरी फिल्म 'आकर्षण' (1988) थी।
परवीन ने अभिनेत्री जीनत अमान के साथ हिंदी अभिनेत्री का परंपरागत रुपवाला ढांचा बदल दिया। सत्तर के दशक में अनंगीकरणीय, अस्वीकृत या वर्जित माने जानेवाले किरदार परवीन ने बिना हिचकिचाहाट और आत्मविश्वास से निभाएं। जो महिलाएं पुरुषों के साथ लिव इन रिलेशनशिप रहती है, खुलेआम शराब पीती है ऐसी भूमिकाएं करने से वह कतई नहीं शरमाई।
परवीन अस्सी के दशक में हेमा मालिनी और जीनत अमान के साथ सबसे ज्यादा शुल्क लेनेवाली अभिनेत्री थी। 1976 में वह हिंदी सिनेमा की पहली अभिनेत्री बनी, जिन्हें टाइम मैगजीन के कवर पर आने का मौका मिला।
उस जमाने में अभिनेता अमिताभ बच्चन यश के शिखर पर थे। दर्शकों में उनका कद सातवे आसमान पर था पर फिर भी परवीन ने अपने अभिनय, नृत्य, लुभावने सौंदर्य से दर्शकों के हृदयों में विशेष जगह बनाई।
"सुबह हो रही है, शाम हो रही है जिंदगी यूं तमाम हो रही है" कहने वाली परवीन की जिंदगी अकेलेपन की सुनसान दास्तान थी। अपने आखरी समय में वह किसी सूखे तालाब की तरह निश्चल रही। उनका निधन 22 जनवरी 2005 को मुंबई में हुआ।
"प्यार करने वाले प्यार करते है शान से", "रात बाकी बात बाकी", "जवानी जानेमन", जैसे गीत जब घटाओ में गूंजते है तब परवीन की सूरत सुबह के सूरज की कोमल लालिमा की तरह नयनों में बिखर सी जाती है।
फ़िल्मी पृष्ठभूमि ना होकर भी उन्होंने अपनी मेहनत, प्रतिभा से अपनी अलग पहचान बनाई। हिंदी सिनेमा में उनके योगदान को सत्तर के सुवर्णमयी गलियारों में विविध भूमिकाओं के
लिए हमेशा याद रखा जाएगा।
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