हिंदी सिनेमा में क्रांति लाने वाली ज़ीनत अमान:

 


हिंदी सिनेमा में क्रांति लाने वाली ज़ीनत अमान: 


कहते है की सौंदर्य प्रेम को जगाता है और प्रेम असुंदर को भी सुंदर बना लेता है। यह अभिनेत्री आभूषण रहित होके भी रती मालूम पड़ती है। जैसे इन्हे देखकर शांत समंदर भी उन्माद से झूमने लगता है, हवा बौखलाती है, ऐसी अलौकिक सौंदर्यज्योत्सना इन्हे प्रकृति ने बहाल की थी। 


ज़ीनत का अर्थ शृंगार, सुंदरता और सिंघार होता है। सत्तर और अस्सी के दशक की यह नायिका हिंदी सिनेमा का सचमुच शृंगार थी। जिनके साज और सज्जा ने हिंदी सिनेमा के नायिकाओं की मूल परिभाषा ही बदल दी। पश्चिमी अवधारणाओं को हिंदी सिनेमा में पिरोने का काम इन्होंने किया। 


उनकी आंखे जैसे धधगती आग थी जैसे उनमें किसीने मदिरा भरी हो, चाल ऐसे जैसे साक्षात स्वर्ग से कोई वरदान प्राप्त अप्सरा प्रगट हुई हो, जब वह "ये मेरा दिल प्यार का दीवाना" पर नाचती थी तब सारे दर्शक इस नवपल्लव लता कांति को आश्चर्य से देखते थे। 

बेझिझक, हवा जैसी बिंदास्त रहनेवाली और हिंदी सिनेमा का कायाकल्प करके नए आयाम प्रदान करनेवाली इस महान अभिनेत्री का नाम है 'ज़ीनत अमान'!


ज़ीनत अमान का जन्म 19 नवंबर 1951 को मुंबई में हुआ। उनके पिता का नाम अमानुल्लाह खान था, वह अफगास्तानी पठान थे। उनकी मां का नाम वर्धिनी सिंदा था, जो एक मराठी परिवार से थी। ज़ीनत के पिता उनके जमाने के महशूर लेखक थे जिन्होंने 'मुगल ए आजम' और 'पाकीजा' जैसी फिल्मों की पटकथा और संवाद लिखे थे। ज़ीनत जब दो साल की थी तभी उनके माता पिता का तलाक हो गया। उनकी मां ने हैंज़ नामक जर्मन व्यक्ति से दूसरी शादी की। 


जब वह तेरा साल की थी तब उनके पिता का देहांत हो गया। ज़ीनत ने अपने नाम में पिता का नाम जोड़ लिया और वह ज़ीनत खान से ज़ीनत अमान बन गईं। 


ज़ीनत की शिक्षा पंचगनी के एक बोर्डिंग स्कूल में हुई थी। वह स्कूल में बहुत ही होशियार विद्यार्थिनी थी। उन्हें लॉस एंजिल्स के "दक्षिणी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय" केलिए छात्र सहायता प्राप्त हुई। लेकिन वह अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी नहीं कर सकीं। अमेरिका में शिक्षा लेने के बाद वह भारत वापिस आई। 


ज़ीनत बतौर पत्रकार 'फेमिना', 'सव्वी' (savvy) मैगजिंस केलिए काम करने लगी। उनकी मनोहर सुंदरता को देख दोस्तों ने मॉडलिंग करने के बारे में सुझाव दिया और वह मॉडलिंग करने लगी। उन्होंने ताजमहल चाय के लिए मॉडलिंग तथा पॉन्ड्स 7 डे टू बेटर केलिए विज्ञापन किया। 


ज़ीनत ने मिस इंडिया प्रतियोगिता में भी हिस्सा लिया और वह तीसरे पायदान पर रनर-अप रही। 1970 में उन्होंने इतिहास रचते हुए मिस एशिया पैसिफिक का खिताब जीता। 19 साल की उम्र में यह खिताब जीतने वाली ज़ीनत पहली भारतीय बनीं । दीया मिर्जा ने यह ख़िताब 2000 में भारतीयों केलिए दूसरी बार जीता था। 


फिल्म निर्देशक ओ. पी. रल्हन ज़ीनत के पिता के अच्छे दोस्त थे। उन्होंने जीनत को "हलचल" फिल्म में पहली बार बतौर अभिनेत्री मुख्य भूमिका दी। मात्र उनकी 'हलचल' और 'हंगामा' (1971) बहुत बुरी तरह से असफल रही। उसी वक्त अभिनेता और निर्माता देवानंद अपनी अगली फिल्म 'हरे रामा हरे कृष्णा' केलिए नई अभिनेत्री की तलाश में थे जो हिप्पी लड़की के किरदार को न्याय दिला सके। 


ओ पी रल्हन के एक पार्टी में देवानंद की नजर बेहद आकर्षक और पश्चिमी थाट वाले ज़ीनत पर पड़ी। देवानंद जब सिगरेट जला ही रहे थे तभी ज़ीनत ने उनके सामने इस अंदाज से लाइटर जलाया की देवानंद भी मुग्ध हो गए। उनके फिल्म की जसबीर उन्हे मिल चुकी थी। इस फिल्म के हिप्पी किरदार केलिए ज़ीनत ने अंग्रेजी में स्क्रीन टेस्ट दिया और "फूलो का तारों का सबका कहना है" गाने वाले देवानंद की वह बहन बन गई। 


इस फिल्म के रिलीज से पहले जीनत मां के साथ जर्मनी लौटना चाहती थी। विदेश में भाषा विषय सीखना चाहती थी। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। कहते है की "जो होता है मंजूर ए खुदा होता है"। अभिनेता देवानंद ने समझाया की फिल्म 'हरे राम हरे कृष्णा' के रिलीज तक ज़ीनत यहां रुके, उन्हे यहां बहुत सारा काम मिलेगा और वाकई उनकी फिल्म 'हरे राम हरे कृष्णा' ने सफलता के चार चांद लगा दिए और ज़ीनत रातोरात तारका बन गई। 


उन्होंने मुमताज को पीछे छोड़ते हुए फिल्म की सारी प्रशंसाएं बटोर ली। हिंदी सिनेमा ने ऐसा दृश्य पहले कभी नही देखा था की कोई नवागंतुक किसी मुख्य अभिनेत्री रानी पर भारी पड़ जाए! पहली बार, भारतीय दर्शकों ने एक ऐसी महिला को स्वीकार किया जिसने किसी फिल्म में कम भूमिका निभाई थी। 


हालांकि 'हरे रामा हरे कृष्णा' के लिए ज़ीनत पहली पसंद नहीं थीं। इस भूमिका को ज़ाहिदा, तनुजा जैसी अभिनेत्रियों ने ना कहा था। ज़ीनत को इस फिल्म केलिए फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का पुरस्कार मिला।


हिंदी सिनेमा के मशहूर निर्देशक और शो मैन राज कपूर उनकी फिल्म वकील बाबू के सेट पर बीच ब्रेक में 'सत्यम शिवम् सुंदरम' की रूपा के भूमिका का हमेशा जिक्र करते थे।


एक दिन ज़ीनत अपने चेहरे पर जली हुई रूप सज्जा सजाके, घागरा चोली के वेश में, रूपा बनके सीधे आरके स्टूडियो पहुंच गई। जब वह राज कपूर के सामने गई तो वह ज़ीनत के निर्धार, काम के प्रति अनुराग देखकर चौंक गए। 'सत्यम शिवम सुंदरम' फिल्म की साइनिंग अमाउंट के रूप में उनकी पत्नी कृष्णाने सोने के सिक्के भेंट दिए।


'सत्यम शिवम् सुंदरम' में रूपा का जला चेहरा भी चांद की तरह दिखता है। झरने के नीचे सफेद वस्त्र में भीगती ज़ीनत हर पुरुष की अभिलाषा बन चुकी थी। 

'सत्यम शिवम सुंदरम' का ज़ीनत का लुक ब्रिटिश अभिनेत्री ऑड्री हेपबर्न से प्रेरित होकर बनाया गया था। 


ज़ीनत जब हिंदी सिनेमा में पांव रख रही थी तब अनेक 

अभिनेत्रियां उनके आगे थी। फिर भी उन्होंने देव आनंद, राज कपूर, बीआर चोपड़ा, फिरोज़ खान, मनमोहन देसाई, मनोज कुमार, प्रकाश मेहरा, राज खोसला जैसे दिग्गजों के साथ काम किया। 


देव आनंद और शशि कपूर के साथ उनकी जोड़ी बहुत जमी। देवानंद के साथ पुकार, हीरा पन्ना, हरे कृष्णा हरे राम, इश्क इश्क इश्क, प्रेम शास्त्र, वारंट, डार्लिंग डार्लिंग और कलाबाज यह सफल फिल्में शामिल हैं। शशी कपूर के साथ 'सत्यम शिवम् सुंदरम', फिरोज खान के साथ 'कुर्बानी', धर्मेद्र के साथ 'धरम वीर', अमिताभ बच्चन के साथ बेहद यशस्वी 'डॉन', 'दोस्ताना', 'लावारिस', 'मनोज कुमार' के साथ रोटी कपड़ा और मकान यह फिल्में बामुराद रही। 


70 के दशक में देव आनंद ने जीनत के साथ 7 फिल्में साइन करके उनके अभिनय यात्रा को मार्ग दिखाया, जिनमें से 4 फिल्में कारगर रहीं। 1974-84 के दौर में राजेश खन्ना-जीनत अमान ने 4 फिल्मों में एक-दूसरे के साथ काम किया और 3 फिल्मे बेहद सफल रहीं। और शशि कपूर-ज़ीनत ने एक साथ की गई 10 में से 7 सफल फ़िल्में दीं। 


ज़ीनत ने नए अभिनेताओं के साथ काम करके एक नया चलन शुरू किया, जिससे पुरुष अभिनेताओं के करियर को शुरू करने में मदद मिली। ऐसा कभी किसी किसी भारतीय अभिनेत्रियों ने नहीं किया था।


ज़ीनत ने हिंदी फिल्म अभिनेत्री में क्रांति लाई। वह पहली भारतीय अभिनेत्री थीं, जिन्होंने अपने करियर की ऊंचाई पर बफ़ेंट्स से इनकार कर बॉब क्रॉप कराया था। 

वह मुश्किल से ही साड़ी और बिंदी में दिखाई देती थीं, 

बिकनी ड्रेस को बिना अश्लील लगे आसानी से परिधान कर सकती थीं। 


ज़ीनत अमान यह नाम प्रवाह के विरुद्ध जाकर चुनी हुई अलग अलग भूमिकाओं केलिए हिंदी सिनेमा में याद रहेगा। उन्होंने आधुनिक शहरी भारतीय महिला की भूमिकाएँ निभाईं। 'रोटी कपड़ा मकान' में व्यावहारिक किरदार में अमीर आदमी के लिए एक गरीब प्रेमी को छोड़ देना, 'मनोरंजन' में उनकी वैश्या की भूमिका, उन्होंने नासिर हुसैन की यादगार फिल्म "यादों की बारात" (1973) में अपने गिटार पर "चुरालिया है" गाते हुए विजय अरोड़ा का पीछा किया, 'अजनबी' (1974) में उनके किरदारों ने गर्भपात पर विचार किया, बदला लेने वाली एक्शन हीरोइन के रूप में अमिताभ बच्चन के साथ लड़ाई की। फिर भी दर्शकों की स्वीकृति हासिल करने में वह कामयाब रही।  


ज़ीनत यह ऐसी "नाव"थी जिसने अपने मरिया पर खलनायिका से नायिका, राजकुमारी से कुरूपता अभिशाप वाली कन्या, इंसाफ का तराजू में न्याय की मांग करने वाली एक बलात्कार पीड़िता की भूमिका निभाई और संघर्ष करती नारी तक की भूमिकाएं मनोभाव से संभाले रखी।  


भले ही राज कपूर की 'सत्यम शिवम सुंदरम' (1977) अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई, लेकिन आज़ादी के बाद भारतीय पर्दे पर पहली बार ज़ीनत अपने नायक को मुंह पर चूमकर बाधाओं को तोड़ने में सफल रहीं।


ज़ीनत जब सिनेमा में आई तब वह हिंदी भाषा से उतनी परिचित नहीं थी। अभिनय की महारथ हासिल नही थी, लेकिन मेहनत और अपार जिद से उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई। कपड़े पहनने का निराला अंदाज, अंदाज ए बया करते हुए दिलेरी इन वजह से ज़ीनत मैगज़ीन की पसंदीदा अभिनेत्री बन गईं। 


यादों की बारात (1973) में गिटार बजाती ज़ीनत ने 'चुरा लिया है तुमने जो दिल को' गीत से हजारों दिल जीते। कुर्बानी में समंदर किनारे "हम तुम्हे चाहते है ऐसे" गाने के वक्त मासूमियत भरे उनकी आंखो से वह मन के पटल पर जीवन की सादगी और व्यथा एक साथ दिखती है। 


उन्हे 'हरे राम हरे कृष्णा' और विवादास्पद 'इंसाफ का तराजू' केलिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का नामांकन मिला। प्रसिद्ध अभिनेता रजा मुराद उनके रिश्ते में भाई लगते है। ज़ीनत 1976 से 1980 तक हेमा मालिनी के साथ सबसे ज्यादा शुल्क लेनेवाली अभिनेत्री थी। 


'सत्यम शिवम सुंदरम' में जब वह कहती है की "दिल टूटने की आवाज नही होती, मगर उसमे से जलजले आ जाते है। आसमान फट जाता है।" तब उनकी आवाज की करुणाजनकता और रौद्र रूप मन को भांता है। 


अभिनय यात्रा के बाद उनकी दो अयश्वस्वी शादियां उनके जीवन का पूर्वार्ध रही! ज़ीनत के कमल जैसे खिलखिलाते जीवन का एक भाग खिन्नता से भरा रहा। उनके जीवन में ऐसा समय आया जहां वह अपना घर बसाना चाहती थी। उनकी पहली शादी 1980 में हुई। यह शादी ज्यादा टीक नही सकी और एक साल बाद ही दोनो का तलाक हो गया। यह शादी किसी समुद्री तूफान से कम नही थी। शरद ऋतु के चंद्रमा की किरणों के समान सौंदर्य की इस मल्लिकाने कई फिल्मों के प्रस्ताव ठुकराते हुए 1985 में दूसरी शादी की। जिसके कारण जीनत बहुतसी तकलीफों से गुजरी। 


ज़ीनत कहती है की मुझे पैसा, प्रसिद्धि से ज्यादा प्रेम चाहिए था लेकिन अफसोस ऐसा कभी नही हुआ, मुझे मै कैसी हूं यह पूछनेवाला साथी नसीब नही हो पाया!" शायद यही उनके जीवन की दो लफ्जों की लेकिन दिल की कहानी थी। 


अपने निजी जीवन में वह बहुत सी किताबे पढ़ती है। और वह मानती है की शारीरिक सुंदरता से पहले मानसिक सुंदरता को टटोलना मानव के सुंदर होने का लक्षण है। 

उन्होंने टेलीविजन पर "आवाज" नाम का शो भी होस्ट किया था। जिसमे स्त्रियों पर हो रहे अत्याचारों पर रोशनी डाली गई थी। अपने कारकिर्द के अंत में उन्होंने भवानी जंक्शन, हाथों की लकीरें, बंधन कच्चे धागों का आदि फिल्मों में परिपक्व भूमिकाएँ निभाईं। 


ज़ीनत वाकई में ज़ीनत थी। हिंदी सिनेमा की इस कांचीने सिनेमा को आकर्षक रूप में बैठाया। उन्होंने अपने सिनेमा में भारतीय महिलाओं के चित्रण में क्रांति ला दी। 


अपने अभिनय और अदाओं से दर्शकों को पुलकित, सम्मोहित और आनंदित करने वाले इस अद्भुत अभिनेत्री को भारतीय सिनेमा में उनके योगदान अभी पूरी तरह से मान्यता नही मिली है लेकिन आने वाला समय भारत को 

बहुत कुछ वाकफियत करने और भारतीय महिलाओं में 

कई आयाम जोड़ने वाली पहली शख्सियत के रूप में याद किया जाएगा। 


 


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