Kaali Ladki| Hindi

 


एक लड़की थी पर "काली" थी। हमारे यहां रंगों की बड़ी अहमियत होती है। सदियोंसे काले रंग को भयावह माना गया है। पता नही काली रात को ही भूतो की शक्ति क्यों बढ़ने लगती है। काले कौवे को भी सिर्फ मय्यत के दिन याद किया जाता है। ज्यादा तर लडको को प्रेम भी गोरे लड़कियों से ही होता है। गोरी है मतलब चांद है, काली है मतलब चांद का दाग है। खैर मेरी बाते बुरी भी लग सकती है। एक गाना भी है "गोरे रंग पे ना इतना गुमान कर, गोरा रंग तो इक दिन ढल जायेगा" इसका मतलब जब रंग ढल जायेगा तब उस लड़की की सुंदरता या निखार कम हो जायेगी। सुंदरता को गुणों से नही बल्कि काला होना या गोरा होने से नापा जाता है। 

चलिए कहानी पर गौर करते है। एक गांव की काली लड़की थी। घर में सब अच्छा था…पैसों की कोई कमी नही थी। 

उसने बीए भी पूर्ण नही किया था तभी उसकी पढ़ाई बंद हों जाती है। अब बीस उम्र के बाद उसके शादी का पड़ाव आता है। घर वाले अपनी लड़की को लेकर परेशान है की अपनी बच्ची तो काली है इसे कोई लड़का हां बोलेगा भी या नही। लड़की मेडिकल स्टोर्स से गोरे होने केलिए क्रीम मंगवाती है। हर उपाय आजमाती है। हल्दी, बेसन का आटा, लगाती है। दिन में दो तीन बार चेहरा धोती है। 

धूप में जावो तो चेहरा ढंकती है। पेट न बढ़े इसलिए खाने पर अंकुश लगाती है। अच्छा पति मिले इसलिए हर रोज रुक्मिणी स्वयंवर का पाठ करती है। मै जब जब उनके घर जाता वह सत्यवान या रुक्मिणी को पढ़ती रहती थी। मैने एक दिन उसे कहा था "अगर मैं यह पढूंगा तो क्या मुझे अच्छी रुक्मिणी मिलेगी"। वह लड़की रुक्मिणी स्वयंवर पढ़ने में इतनी व्यस्त थी उसने मुझे जवाब भी नही दिया। 

हल्दी, बेसन का आटा, मेडिकल क्रीम से उसका चेहरा गोरा तो हो गया। लेकिन पांव अभी काले थे। जब भी लड़के उसे देखने केलिए आते वह पांव साड़ी में छिपा लेती। खैर बहुत सारे लड़के उसे देखने केलिए आए। लड़की को कही ठिकानों से कोई जवाब नही आया तो उसके बाप ने कई लड़को को खेती या सरकारी नौकरी न होने के कारण नकार दिया। उसमें जो लड़का लड़की को अच्छा लगा था उसे भी नकार दिया। स्त्रियां अपने मन का चुनाव भी नही कर पाती। बाद में इसी लड़के को सरकारी नौकरी लगी यह विशेष बात! 

करोना के समय में एक स्थल आया। लड़के वाले रईस खानदान के थे। खेती भी थी, लड़के को प्राइवेट जॉब भी था। दहेज की अच्छी खासी रकम लेकर शादी हुई। शादी भी ऐसी हुई जैसे सब "लड़की को कब घर के बाहर निकालते है" इस मंशा में तुले हो। 

लेकिन लड़के वालों को यह शादी केवल एक समझौता था।

इस रईस घटिया फैमिली ने केवल पैसों के लिए शादी की थी। वो "काली है" नाम से उसे हर रोज घर के हर व्यक्ति से गालियां खानी पड़ती। उसके साथ जानवर की तरह बर्ताव किया गया। लेकिन बाप ने नरक में ढकेला था तो वह बेचारी 

सहती गई। उस लड़की के साथ जो हुआ वह दिल दहलाने वाला था। उसके संस्कार अच्छे थे। वह शांत स्वभाव की थी। उस लड़की ने कभी किसको ऊंची आवाज में बात तक नही की थी। एक अच्छा साथी मिले बस यही चाह उसने भगवान से की थी। बस उसने रुक्मिणी स्वयंवर या सत्यवान की जगह, "सावित्रीबाई फुले" को अगर पढ़ा होता उसमे आत्मबल होता। आत्मबल से वह खुदके पैरो पर खड़ी रहती। कोई समाज उसे काला या सांवला कहने की। उसे एक वस्तु की तरह रास्ते पर फेंकने की हिम्मत न करता। 

जो कीचड़ और गोबर सावित्रीबाई ने स्त्री जाति केलिए अपने साड़ी पर झेले थे, जो गालियां उन्होंने खाई थी, उससे वह परिचित होकर अच्छे से पढ़ती। तो शायद वह बेहतर अवस्था में होती। 

अगर हर लड़की पूरी जिंदगी सावित्रीबाई को हर रोज पुष्पमाला चढ़ाए, उनको नमन करे तो भी उनके ऋण मीट नही सकते। यह बात अलग है की स्नैपचैट पर आंख मारकर फोटो डालने वाली जमात उनके कार्य को नही पढ़ती। 

जिस समाज में नौ साल की उम्र में लड़कियों की शादी होती थी, पंधरा साल में बच्चे होते थे। जिन्हे पूरा जीवन नरक की तरह जीना पड़ता था। आज उसी समाज में उनकी स्थिति थोड़िसी बेहतर हुई है। आदरणीय सावित्री बाई फुले। 

हरीश। 


Comments

Popular posts from this blog

MS Dhoni: Once in Generation | English

Sports: Who will be the contender for the fourth position in the 2023 World Cup?

सावित्री