पापा मैं और बस...

 


Papa, Mein Aur Bus..

गरीब या अमीर होने से दुखद है मिडल क्लास/ मध्यम वर्गीय होना। मिडल क्लास आदमी जीवन में बहुत कम क्षण खुश होता है। मानो उसकी खुशी कोई छिन रहा है। वह हमेशा से किसी ना किसी उलझन में बंधा होता है। उसे रोने का हक भी नही होता। जब गरीब के घर में चूल्हा जलता है तब वह हमे आज रोटी मिलेगी इस खुशी में चैन की नींद सो पाता है। पर मिडल क्लास आदमी हर रात डरा डरासा रहता है। उसको केवल कल की चिंता ही नही, उसके बच्चों के बच्चों की भी फिक्र होती है। उनको पाने केलिए पूरा आसमा बाकी होता है लेकिन इस आसमा की बारिश केलिए पूरी जवानी भीग जाती है। 

जुलाई २०१५। मै बहुत खुश था। दिल में रनछोड़दास चांचड़ बनने के इरादे से मेरा नांदेड़ जिले के एसजीजीएस अभियांत्रिकी कॉलेज में दाखिला हुआ। कॉलेज के कुल डेढ़ किलोमीटर दूरी पर हमारा मिलिट्री हॉस्टल था। पापा को उस हॉस्टल की जानकारी पहले से थी। मैने कौनसी रूम सबसे अच्छी है यह देखा। फिर मेरा पूरा सामान आठ नंबर की रूम में रखा। पापा ने मुझे उनकी जबलपुर से लाई हुई आर्मी के कवर वाली बड़ी सूटकेस मुझे दे दी थी। उसकी खुशी मेरे मन में अलग से थी। 

उस दिन शायद अब्दुल कलाम साहब की मृत्यु हो चुकी थी। मै कुछ देर तक उनके खयालों में डूबा रहा। कॉलेज का एडमिशन तो हो गया था। बाद में पापा ने हॉस्टल का एडमिशन भी करा दिया। दोपहर दो बजे के आस पास एक घंटा मै गधे की तरह सोता रहा। जब नींद से उठा तो सामने पापा थे। उन्होंने कहा "सब काम हो चुके है, सब सामान रख दिया। मै अब बस स्थानक से सीधे गांव चला जाता हूं।" मै और पापा बस स्टॉप केलिए प्राइवेट बस से निकले। कुल सात किलोमीटर का फासला था। बस में बाबुल सुप्रियो का बेहद खूबसूरत गीत बज रहा था। शायद "हमने तुम को दिल दे दिया, यह भी ना सोचा कौन हो तुम" यह गाना था वो। 

हम दोनो बस स्टॉप पर पहुंचे। उन्होने मुझे एक किलो सेब, एक पानी की बोतल खरीद के दी। जेब में से पांच सौ के चार नोट निकाल के दिए। हमने साथ में चाय पी। पापा ने पूछताछ कक्ष में मेरे लिए एक महीने की पास सुविधा है क्या इसकी जानकारी ली। पापा ने मुझे समझाया "पहली बार घर से दूर रह रहे हो। समय पर खाना खाना, समय पर पढ़ाई करना, यह चार साल जिंदगी के सबसे महत्त्वपूर्ण होते हैं। कुछ परेशानी आए, पैसों की जरूरत पड़े कॉल करना। पंधरा अगस्त को छुट्टी होगी घर आना। मै पहुंचते ही कॉल करूंगा। यहां नजदीक से तुम्हे सिटी बस मिलेगी।"

उसी वक्त नांदेड़ अंबेजोगाई की बस प्लेटफार्म पर पधार चुकी थी। पापा ने मुझसे हात मिलाया। कंधे पर दूसरा हात रखा। कुछ क्षण बाद वो हात मेरे हात से छूट रहा था। जैसे जैसे पापा मुझसे दूर जा रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे मेरा आसमां कोई चुरा ले जा रहा है। अब किसके सहारे मैं जीवन के विविध रंगों में बिंदास भीग सकूंगा?

पापा ने मुड़ कर देखा और कहा "येतो मग (आता हु मै)". मेरे आंखों में आंसू थे। अचानक मेरी आवाज सावन से मनभावन हो गई। मेरा मधुर रेडियो अचानक फुर फूर बजने लगा। जैसे सब सिग्नल खो गए हो। मैने रोती हुई आवाज में उनसे कहा "हा जा तुम्ही (जाईए आप)". मै रो रहा हु यह बात पापा ने पहचान ली। 

पापा हात में उनकी छोटी ऑफिस की बैग थी। मैने उन्हे बस में बैठते हुए देखा। बस शुरू हुई। लेकिन पापा ने खिड़की से बाहर नही देखा। मैने सोचा पापा देख क्यों नहीं रहे? वह रुमाल से अपनी आंखे पोंछ रहे थे। उन्हे मैने जिंदगी में पहली बार रोते हुए देखा। जैसे ही बस घूमी उन्होंने खिड़की से हात निकाला। मैने अपने दिल को बहुत समझाया की आंसू की एक बूंद भी आए तो देख लेना। पर मैं खुद को रोक नहीं पाया। मै सिर्फ किसी मासूम बछड़े की तरह देख रहा था। कुछ देर केलिए बाजू की सभी आवाजे, नजारे खामोशी में चली गई थी। पुरुष का दुख एक बाढ़ की तरह होता है। उसके मन के तट की रेत जैसे जैसे गिरती जाती है वैसे वैसे वह दुखों के नदियों का बोझ सह नहीं पाता। 

अभी कुछ दिन पहले मेरे पापा की मां, मेरी दादी की मौत हो गई। मै घर गया था। आठ दिन घर पर रुका। सब क्रिया विधि हो जाने के बाद रविवार सुबह मै पुणे केलिए निकला। हमारे घर से बस स्टॉप एक डेढ़ किलोमीटर दूर है। पापा ने कहा चलो मैं तुम्हे छोड़ देता हु। हम अंबेजोगाई बस स्टॉप पर पहुंचे। सात साल बाद मेरे साथ वहीं इतिहास दोहराने जा  रहा था। पापा मुझसे पूछ रहे थे की गाड़ी पुना कब पहुंचती है, पानी की बोतल ली या नही, दोपहर का खाना कब खावोगे। चाय पियोगे या नही। मैने ना कहा। 

फिर पापा ने पूछा "पैसे है ना तुम्हारे पास"। इस बार मेरे पास अच्छे खासे पैसे थे। मै खुद कमाने लग गया था। फिर भी पापा ने हजार रूपए जबरदस्ती हात पर रख दिए और मैं अचंबे से देखता ही रह गया। 

आप लाखो रुपए कमालो पर मां बाप के प्रेम की कीमत कभी भी कोई कुबेर अदा नही कर सकता। प्लेटफार्म पर अंबाजोगाई पुणे गाड़ी लग चुकी थी। मै बस में पांचवे सीट पर दाई और से बैठा। पापा खिड़की के पास नजदीक आ गए। उन्होंने मुझे जैसे मैं छोटा बच्चा हू ऐसे समझाया "काम का टेंशन मत लेना, खाना अच्छा होता है क्या मेस का? अब बारिश के दिन है बाहर घूमने मत जाना।" मै केवल हा हा कहता गया। उसके बाद मैंने उनसे कहा "आप ज्यादा गुस्सा मत करना, पहले ही ब्लड प्रेशर की दवाईयां चालू है। मेरी कोई चिंता मत कीजिएगा। आप ही समय पर खाना और आराम कीजिएगा। कुछ बात हो तो मुझे कॉल पर तुरंत बताना।" 

मेरा एक हात खिड़की पर था। उनका हात मेरे हात से नजदीक था। मै उनसे हात मिलाना चाहता था। बस शुरू हो गई और पापा का चेहरा मुरझाए हुए पीले पत्तो की तरह सुख गया। उनके चेहरे पर उनके मां का दुख साफ छलक रहा था। शायद वह फुट फुटकर मेरे पास रोना चाहते थे। मैने तब समझा की पापा जिंदगी में कितने अकेले हो गए है। उनकी आंखे भर आई थी। मैने चुपचाप उनकी तस्वीर मोबाइल में कैद कर दी। मै उन्हें गले लगाना चाहता था। पर अफसोस मै उनके आंखों से आंखे भी नही मिला पाया। बाप की छाती हमेशा हिमालय की तरह होती है। उनकें चेहरे पर देखे तो सब कुछ शांत नजर आएगा। लेकिन उनके भीतर अनंत जीवनयुद्ध धधक रहें होते है। 

अभी कुछ दिनों पहले रतन टाटा ने कहा था "उम्र होने पर जब अकेलेपन का एहसास होता हैं तब जिंदगी बेहत कठिन लगने लगती है।" पापा को डर था की कही उनके आंसू गिर ना जाए। वो ठहरे और देखते रहे मुझे। फौज में बंदूक ताने खड़े रहने वाले इस हिमालय की छाती वाले शख्स का दिल ऊपर से पहाड़ जैसा लगेगा पर अंदर से वो फूल की तरह कितना कोमल है यह मै जानता हु। 

मेरे पापा ने आर्मी केलिए बीस साल दे दिए। आधी जिंदगी देश के अलग अलग कोनो में बिताई। जब रिटायर होकर वे आए सरकारी नोकरी के चक्कर में फिर भी वे घर से दूर ही रहे। आज वह अपने ही शहर में, घर में है। लेकिन वो पचपन का पड़ाव पार कर चुके है। अपनी छोटी औलाद को पीटने, गाली देने वाला हर बाप इस उम्र में शांत और गंभीर हो जाता है। बचपन में पापा जब मुझे गाली देते थे, मै वीरभद्र की तरह गुस्से में आ जाता था। आज पापा केवल जिंदगी की सीख देते है। शायद उसके साथ एक गाली भी दे दे तो अब मजा आयेगा। 

चिंता जितनी नही खाती उतना यह अकेलापन आदमी को खा जाता है। मै भी उम्र के उस पड़ाव पर हु जहां मेरी और सपनो के बीच घमासान जारी है। मां बाप के सपने मेरे लिए कुछ अलग होंगे यह मै जानता हु, मानता हु, उनका सम्मान करता हु। हमारी पीढ़ी का चौबीस पंचीस की उम्र का बेटा घर पर खुलकर बोल नही सकता। बहुत से अंतर्गत संघर्ष होते है। जिम्मेदारियां समझने लगती है।

पापा से बोलना इतना आसान तो नही पर मैं एक बार बोलना चाहता हु, सब कुछ। मेरे सपने, जिंदगी से चाहत, विचार। एक बार पापा को गले लगाना चाहता हूं। गिनना चाहता हु उनकी धडकने कितनी तेज होती है। बचपन में जैसे पैरो से पीठ दबाता था। वैसे फिर दबाना चाहता हूं और तोहफे में बचपन की तरह पांच रुपए हक से मांगना चाहता हु। और चाहता हूं की उनके और मेरे बीच यह "बस" नाम की दूरी हमेशा केलिए जल्द खत्म हो।  बस…इतना ही। 


#पापा, मैं और बस। 


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