उसकी मुस्कुराहट

                 उसकी मुस्कुराहट😀

जनवरी के महीने के कुछ दिन शेष थे।दोपहर का एक बज चुका था।मेरी इंजीनियरिंग आखरी पड़ाव पर थी। आखरी सेमेस्टर को समाप्त हो जाने में सिर्फ तीन चार महीने बाकी थे। कॉलेज के ऑडिटोरियम में जबरदस्त तैयारिया चल रही थी। हमारा कॉलेज किसी नाट्य प्रस्तुति स्पर्धा में भाग ले रहा था।खाना खाने के आधे घंटे बाद सोचा की चलो चाई पीते है।

हमारे कॉलेज के सामने चार पाच बढ़िया चाई  की दुकानें थी।लेकिन उनमें सबसे प्रसिद्ध था "एक नंबर चाई वाला" ।उसकी चाई जुबां को मंत्रमुग्ध कर देती थी।हमारी जीभ फिरसे ललचाकर कहती "एक और चाई देना भैया"☕

सूरज आसमान पर छाया हुआ था।पर हम भी इंजीनियर थे । हम "मई" महीने की दोपहर में भी चाई ही लेते है। इंजीनियर के इश्क़ का दूसरा नाम मानो चाई है।

मेरे साथ मेरे दो दोस्त थे एक का नाम था सागर और दूसरा सृज्ञ। दोनों कलाकार आदमी थे इसीलिए दोनों दिलसे भावुक किस्म के थे।

कॉलेज के सामने नेशनल हाईवे था।तो चौबीस घंटे वहां से ट्रक और दूसरी बड़ी गाडियां हवा के समान भागी जाती थी।

हम तिन्हो ने चाई ले ली। मैंने एक और चाई मंगाई। बड़े बड़े बिस्कुट ने स्वाद में और  सुगंध डाला।

जो सृज्ञ था जान बुझ के जल्दी चाई ख़तम नहीं कर रहा था, क्यों कि बिल भरने पहले कोन काउंटर पर जाए भाई ? और सागर जो था वो बहुत ही सरल आदमी।कोई नहीं भरा तो वो खुद बिल भर देता था।

चाई पि के हम दुकान से बाहर निकले।हाईवे परसे बहुत सारी ट्रक गुजर रही थी। और रास्ते पर हमे दिखी एक सत्तर साल की वृद्ध महिला। दिखने में सावली,एक चस्मा लगा हुआ। चेहरे पर उम्र के निशान थे।त्वचा बूढ़ी हुई मुरझाई हुई। आंखे निस्तेज।

उसकी साड़ी मैली हुई थी।जैसे उसने तीन चार दिन से नहाया न हो।

उसके हात में दो बड़ी बैग और सामान था।वो हमे किसिका पता पूछ रही थी। उसकी आवाज में बुढ़ापे के कारण उतना दम भी नहीं था।फिर भी हमने पूछा "कहा जाने है आपको" 

उस बूढ़ी औरत ने कुछ कहा जो हमे बिल्कुल भी समझ नहीं आया।उसकी भाषा अलग थी।पहराव बंजारा समाज की तरह था। उसने सिर्फ इतना कहा "मालाकोली... मालाकोली ...मेरी बेटी का घर"

मालाकोली यह गाव नांदेड़ जिले से चालीस किलोमीटर दूर था।

तो हमने सोचा,ये भटक के यहा आयी है।

हमे डर था ये फिर से कहीं भटक ना जाए।गाडियां भी बहुत तेज है,कहीं गलती से ये सड़क के बीच ना चली जाए।

मैंने पूछा "दादी, पानी लोगी क्या आप"

सागर बोला "हम इसे इसके गांव की बस तक छोड़के आते है ऊपर,चलिए!"

रास्ते में मैंने कहा "बस कंडक्टर को कहेंगे की उसे गांव आए तो उतार देना!"

सागर शायर था,उसी वक्त उसकी शायरी जागी,और वो सर हिलाके बोला "इंसानियत नहीं सिर्फ कागज पर लिखने में,वो है करने में"

सृद्य बोला "क्या सागर भैया राइम तो हुआ ही नहीं"

तो उस बूढ़ी औरत का एक फटा हुआ बैग मैने ले लिया। सृद्य उस बूढ़ी औरत को पकड़ के आगे ला रहा था।

उसे देख के ये एहसास हुआ कि उस बिचारी ने दो दिन से कुछ खाया नहीं होगा। झूककर चल रही उस बेचारी को देख के हमारा हृदय द्रवित हुआ।

वो बूढ़ी औरत इतनी बेजार हो चुकी थी कि ऐसा लगा उसको जान बुचके किसीने भूका हकाल दिया हो।

रास्ते में हनुमान मंदिर आया। उसी के सामने अमरूद का ठेला था।उसपर हरे हरे अमरूद रखे हुए थे। उस बिचारी को भूक इतनी लगी थी उसने चलते चलते एक अमरूद उठा लिया।और खाने लगी। सृज्ञ ने उस ठेलेवालेे को पांच रुपए निकाल के दे दिए।पर उस अमरूद वाले ने वो  पांच रुपए नहीं लिए। पेट का दर्द क्या है ये , एक पेट केलिए जी-जान से दो रुपए कमाने वाला ही जानता है।

अब हम कालेश्वर कमान तक आ चुके थे, बस अब सिर्फ रास्ता लांघना था।

सागर बोला "उसे दोनों तरफ से हात से पकड़ेंगे और  पैसे देकर बस में बिठाएंगे"

उसी वक्त गाड़ीपर एक आदमी आया,उसकी आवाज आयी

"अरे ठहरो,वो मेरे साथ है"

हमने पीछे देखा,एक पचास साल का आदमी था।

हमे लगा वो उसका बेटा होगा।लेकिन वो शख्स उसका दामाद निकला।

बूढ़ी अम्मा के दामाद ने फिर गाड़ी पर बैठे बैठे उस बुढ़िया के जिंदगी की कैफियत सुनाई और कहा "

मै स्कूल में अध्यापक हूं,इनको बोला था यही रुकने को,यह शायद आगे निकाल गई।

 इसका बेटा सरकारी वकील है नांदेड़ जिल्हे में, उसको बीस एकर खेती है,बड़ा घर है गांव में ,घर में पैसों का अंबार है,कुछ सालो पहले वो कुछ नहीं था,अब घर की रौनक बढ़ी तो ये बुढ़िया उस घर में खटकने लगी।

 अब इसे संभालनेसे मना कर रहा है।शैतान साला।क्या करना है इतने पैसे का जो अपने सगी मा को तुम संभाल नहीं सकते।

हम तीनो सिर्फ ध्यान से सुनते रहे।

उस बूढ़ी दादी ने हमारी तरफ देखा,

उसकी आंखे हमारी इंसानियत देखकर नम हो गई थी।उसने उसके हात हमारे सर और गाल पर से फेरे। वो गाल ही गाल में कुछ कह रही थी,शायद हमे दुआं दे रही थी। उसकी कुछ देर पूर्व निस्तेज आंखे अब चमकने लगी थी।

हमने उसे उठाया और उस हीरो होंडा गाड़ी पर बिठाया। वो बैठ गई।मैंने उसकी बैग हात में दे दी।

उसके दामाद ने गाड़ी शुरू की,जैसे ही उसका पाव गिअर पर पड़ा,उस बूढ़ी अम्मा ने पीछे देखा 

उसके पीले पत्ते जैसा हात दिखाया।और प्यार से मुस्कुराई।

हम तीनो के मन में अपार समाधान का भाव। समाज के प्रति वो हमारा कर्तव्य था। इंसानियत केवल स्टेटस में दिखावे और कागज पर लिखने के लिए नहीं है 

किसी का दुःख लेने में और किसी और को थोड़ी खुशी देना यह कितनी सुहावनी भावना है यह हमें महसूस हुआ।

उस वक्त हम तिन्हों गहरे भाव में डूबे हुए थे।मैंने कहा "जिदंगी में जो मर्ज़ी गरीबी या अमीरी आए,अपने मां का हात कभी नहीं छोड़ना है।"

सागर बोला "यार,क्यों लोग अपने मां के साथ ऐसा करते है।

सृद्य की आंखे कुछ बोल रही थी "अच्छा हुआ उसने एक अमरूद तो खाया,बिचारी भूकी थी"

हम चलते चलते कॉलेज के सामने आ चुके थे जहां हमने उस बूढ़ी अम्मा को देखा था,उसकी वो सहमिसी मुस्कुराहट दिल पर ज़ख्म कर गई।और सवाल छोड़ गई।

इक मां बच्चो को संभाल सकती है।लेकिन  बूढ़ी हुई मां भी एक बच्चे का रूप होती है, उसे लोग क्यूं नहीं संभाल पाते। 🙁


हरीश वृंदावन❣️

(पैसे कोई भी कमा लेगा,कई ज्यादा कीमती है मा बाप का दिल कमाना)


Comments

Unknown said…
Bhari harish👌👌
Unknown said…
🔥🔥✒️❤️
Sagar Mashalkar said…
Waa Harish! Ekdam hubbehub lihla aahe. Punha aathavan jhali tya prasangachi. Khupch hruy aavalnara prasang hota. Khup kahi shikvun gela. 👍❤👐
Unknown said…
Very Good dada👌💯👏🙌, Khup Shikvun janara article ahe....Relatable in our society...
Unknown said…
Very well written Harish
Keep hustling ❤️
Unknown said…
Khup mast lihilay.. I can literally imagine everything u mentioned ...

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