Story of Karol Bag and Aspirants


 

प्रिय करोलबाग, 

कैसे हो, बहुत दिनों बाद तुम्हारी याद आई। सोचा थोड़ी कुछ बाते और यादें सांझा करू। कल यूपीएससी का रिजल्ट आया। जिन्हे सफलता मिली उनके घर पर पार्टियां चल रही है। कोचिंग सेंटर के बाहर सैकड़ों बैनर रातोरात लगे है। स्वीट शॉप के बाहर भीड़ भी काफी बढ़ी है। अखबार मीडिया में एक ही चर्चा है रैंक वन इशिता किशोर ने मारी बाजी वैगेरा वैगेरा। सालो साल तुम्हे ऐसे माहौल की आदत तो होगी ही।

 हर साल हजारों मासूम चेहरे तुम्हारी शरण में आईएएस और आईपीएस का सपना लिए आते है। जैसे तुम्हारी गलियों में किसीने जड़ी बूटी छुपाई रखी हो! करोलबाग मैने तुम्हे बहुत करीब से देखा है। मुझे याद है वह कोचिंग सेंटर की एक रेखा , अलग अलग प्रकाशनों की हजारों नोट्स एवम किताबे और उस गली से हर दिन चाय, नाश्ते पर आंखो में किसी हीरे की तलाश में गुजरने वाले हजारों लड़के लड़कियां, अनेक गंभीर चेहरे, अनेक उदास, अनेक उत्साही, अनेक लड़कियों को ताड़ने वाले, अनेक लंबी गप्पे झाड़ने वाले और गांव में राशन की लाइन की तरह दारु पीने केलिए शराब की दुकान के सामने खड़े खड़ी लड़की लड़किया। गौतम गंभीर के घर के सामने वाला खूबसूरत बगीचा और हरे भरे कुदरत के बीच पढ़ने वाले अनेक चेहरे, खुद का समय बरबाद न हो इसीलिए रात को मेस से डब्बा ला ऐसा दोस्त को कहने वाले मेहनती! लाइब्रेरी में दिनभर तपश्चर्या में लीन कुछ पौधे। 

तुमने तो न जाने पिछले कितने सालो से कितने दिल टूटते हुए देखे है। सोचता हूं "जिनके उम्र समाप्ति की वजह से टूटते होंगे लाल बत्ती पाने के ख्वाब" 

वह सपनो के मुसाफिर अपने घर जाते वक्त क्या सोचते होंगे। जिस घर को बरसो पहले एक सपने केलिए छोड़ा था उसी घर को वापिस देखकर उनके पैर लड़खड़ा तो होते ही होंगे। वह इकोनॉमी पढ़ते पढ़ते भूगोल की गोद में बैठते चेहरे, साहित्य को रात रात भर जीने वाले, इतिहास को दोहराने वाले: कब आया था मुहम्मद घोरी, प्राचीन भारत की विशेषता, अल्तमश तुगलक ने क्या किया में उलझने वाले, पॉलिटी समझते समझते उम्र की क्वालिटी बिगाड़ने वाली घड़िया, वह मुरझाई आंखो में छुपे आंसू कौन देखता होगा?

किसी सपने के पीछे एक उम्र गंवा देना और फिर कुछ हासिल ना होना कितने दुख की बात है। करोल बाग तुम अगर जन्नत हो तो इस जन्नत की हकीकत कुछ अलग ही है। 

जिनके घर आती है यश की बारात उन्हें मिलती है माला फूलो की, पर जो लगभग ९९.९८% लोग है उनका क्या? 

इम्तिहान केलिए उन्होंने भी बहुत से कागज फाड़े होते है, बहुत से सुख हवाओ में गाड़े होते है, दर्जनों पेनो की सियाही खाली हो चुकी होती है,

उनकी कितनी राते अकेली गुजरी होती । मन में न जाने कितनी बार सपने टूटे होते है, घरवालों की तस्वीर देखकर उन्होंने मन को ऊंचा किया होता है। लाइब्रेरी में पढ़ते हुए हजारों लोग और सिर्फ पंखे की झिगझिग आवाज! कितना डर, बेताबी, आकांक्षाएं छिपी होगी उस झिगझिग आवाज में! 

साल दर साल शिद्दत से पढ़ने वाले उन जिद्दी लेकिन टूटे पहाड़ों को रोता देख क्या तुम्हे बुरा नही लगता। करोलबाग के कितने कमरे चार्ट, नक्शा, नोट्स से दुल्हन की तरह सजे होंगे! हजारों लोगो की सुबह शामें इस दीवार और घड़ी की टिकटिक को देखते हुए गुजरी होगी। करोलबाग तुम्हे पता तो होगा ही, 

देश में दस लाख लड़के लड़कियां इस परीक्षा में बैठते है। उनमें से करीब तेरा चौदा हजार प्रिलिम पास करते है। और उनमें से केवल पहले हजार उम्मीदवार ही चुने जाते है। यानी उम्मीदवारों का कुल यूपीएससी पास प्रतिशत है सिर्फ 0.2%! 

डेढ़ साल पहले की बात है, मै सुबह सुबह सरदार जी के मेडिकल पर गया था। दिल्ली की ठंड ने मुझे बीमार जो कर दिया था। और मेडिकल पर एक मराठी आदमी की आवाज सुनाई पड़ी। मैने तुरंत उसके बोलने के लहजे को पकड़ लिया। उसने बातचीत में पता चला की वह हमारे कॉलेज के इंस्ट्रूमेंटल डिपार्टमेंट एक प्रोफेसर के बड़े भाई है। उनके साथ उनका एक दोस्त भी था। वह बहुत ज्यादा खुश था इतना की सिर्फ नाचना बाकी था। क्योंकि उनका बेटा आईएएस बना था। उनके हात में लड्डुओं का बॉक्स था। उन्होंने मुझे चाय पिलाई। मैने उनके साथ एक सेल्फी खींची। करोल बाग ऐसी अच्छी यादें भी तुमने दी है।  

लेकिन मेरा एक दोस्त कल से खामोश है। यूपीएससी करता है तुम्हारी गलियों में। अनेक बार सामने वाले के आंसू पोछने से बेहतर होता है उन्हे रोने देना सिर्फ गले लगाकर। बस खोया हुआ है कल से कमरे में अकेले। 

करोलबाग, यह समझाना बहुत मुश्किल होता है की यह रिजल्ट आपकी जिंदगी तय नही करता। ये जिंदगी भर के लिए फैसले थोड़ी ना है। जिन्हे देश बदलना है वह सामान्य रहकर भी तो बदल ही सकते है। 

सोचता हु हमारी सिस्टम कितने मानसिक बीमार पैदा कर रही है। लाखो युवाओं की ताकत एक ही दिशा में जाना ये कैसी भारतीय शिक्षा व्यवस्था है। कही ये हमारी व्यवस्था की हार तो नही है? हम कैसे समाज की रचना करने जा रहे है? सरकारी नौकरी ऑक्सीजन थोड़ी ना है। क्या हमारी शिक्षा व्यस्था जिंदगी जीने केलिए दूसरे रास्ते दिखा नही सकती? 

ऐसे बहुत से सवाल मन में है। 

तुम्हे एक विनती है, तुम्हारे करोलबाग स्टेशन पर जब उतरता होगा कोई छात्र सौ ख्वाब और उम्मीदें सजाकर, लेकर लाल बत्ती और कुछ इज्जत के परिंदे, तो समाज के ऊंचेपन की जंजीरों में झुके उन कंधो को समझाना की "देख बेटा दो तीन साल ट्राय करना, लगन से कोशिश करना यहां बाल सफेद करके अपनी जवानी खराब मत करना। दो तीन साल में सफल होंगे तो बहुत अच्छा और न हो तो जिंदगी में असीमित खूबसूरत रास्ते है। बहुत बढ़िया सी जिंदगी है बस तुम अपनी दृष्टि लंबी रखना। 

और समाज से दरख्वास्त करना की "यात्रीगण कृपया ध्यान दे प्लेटफार्म नंबर वन पर एक छात्र आईएएस बनने आ रहा है कृपया अपने भविष्य के राष्ट्र निर्माता से प्यार से बात करे। ताने देना इंसानों का नही जानवरो का काम है। धन्यवाद" 









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