मै भगत सिंह | हिंदी




मै भगत सिंह... 



 

जेल की सलाखे इस कोने के अंधेरे से और भी ज्यादा चमक रही है।मेरे जिंदगी के कुछ पल शेष है। सुखदेव मेरा राजा राजगुरु ठहाके  लगाकर हस रहे है, मौत से खौफ नहीं तो उन्हें डर काहेका। 

कल मेरी फांसी है, कुछ लम्हे जिंदगी के बस आंखों के सामनेसे जा रहे है, दिख रहा है, मेरी भारत माता आजाद हुईं है, सदियोसे घिरी जंजीरे हमने उखाड़ फेंकी है। बस हम उस पल को देखने यहां नहीं होंगे। आजाद भारत कितना सुरीला शब्द है, अब तक कितने जाने गई है मंगल पांडे से लेकर अब तक ..अनगिनत!! इस शरीर पर किसे मोह है, इस शरीर की औकाद ही क्या है, मै खुश हूं कि मै एक विचार छोड़के जा रहा हूं।

आठ साल का था मै,जब गांधीजी को देखा था..."सत श्री अकाल गांधीजी"  कहता हुआ वो बच्चा मै ही था। गांधीजी बोले आज से वंदे मातरम भी बोलो। 

मै तेरा साल का था, जब जालियानवाला बाग में जनरल डायर ने मेरे मा बहनों छोटे बच्चों ,भाई, चाचा दोस्तों पर गोलियों की बौछार कर दि। कितना रोया था मै उस दिन। वो हजार से ज्यादा मेरे मा बहनों की बिखरी हुई लाशे। वो कुआ खून से भरा हुआ था,मिट्टी तपते सूरज की तरह लाल हुई थी। वो मिट्टी मैंने उठाई थी,और कहा था ये क्रांति होगी इसी बलिदान से। काश इस मिट्टी से बंदूके उग सकती तो मै ऐसे गोला बारूद के लाखों पेड़ उगाता।

बचपन मै भी गांधीजी का मुरीद था, उन्होंने जब नॉन कॉरपोरेशन मूवमेंट शुरू की तब हम सड़कों पर उतर आए थे। स्वदेशी का स्वीकार, अंग्रेजी स्कूल में नहीं जाएंगे, उस आंदोलन से पूरे युवकों में नई चेतना जगी। पर गांधीजी ने अचानक यह आंदोलन बंद कर दिया। माना कि चौरी चौरा मै अंग्रेज पुलिस मारे गए थे,लेकिन उनसे ज्यादा हमारे लोगो पर गोलियां बरसी थी। और फिर मैंने अपना खुद का रास्ता ढूंढ ना चाहा। कॉलेज के दिनों में मै लाहौर में गदर,ट्रिब्यून अखबार में खुद का कॉलम लिखता था ।

मैंने मेझिनी लेनिन पढ़ना शुरू किया था। भविष्य में होने वाले वैचारिक द्वंद्व केलिए मै डिबेट में क्या बोलना चाहिए,किस प्रकार तर्क पूर्वक हर मुद्दे का समाधान औरो के सामने रखना है इसका अध्ययन करता था।

मैंने अपने पिताजी को बता चुका था, मेरी जिंदगी आग और बारिश की तरफ है। आजादी मिली तब उस बारिश मै सब लोग खुशी से भीगना, पर उससे पहले मुझे इस आग मै लहू अर्पण करना होगा। मै यादों मै रहना नहीं चाहता,मै एक विचार देना चाहता था,सदियों केलिए।

उसी वक्त मै हिन्दुस्थान रिपब्लिक एसोसिएशन से जुड़ा। वहां मुझे मिले आजाद बिस्मिल और कई साथी। जो अपनी मौत की चिता पहले ही सजा चुके थे अपने मिट्टी के नाम। 

हमे पूरा विश्वास है अंग्रेज सरकार आजादी कागज कानून अनशन से नहीं देगा। जब तक हम इट का जवाब पत्थर से नहीं देंगे तब तक वे सुधरेंगे नहीं।  

कितने ऊंचे स्वर में गाता है मेरा

बिस्मिल, सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है। जेल के बाहर अब छोटे बच्चे भी इंकलाब ज़िंदाबाद के नारे लगा रहे हैं। वो सुनकर सीना चौड़ा हो जाता है हमारा। हमे नाज़ ऐसी मौत पर।

लाला लाजपतराय हमारे गुरु थे राजगुरु सुखदेव शिव, जय कितना मानते थे हम उन्हें। जब सरकारी कॉलेज बंद हुए तब लालाजीने हमारे लिए कॉलेज शुरू किए थे। सायमन कमिशन के विरोध में हम सब रास्तों पर थे, उनकी लाठी मार मारकर हत्या करदी स्कॉट ने ।

उनकी मौत का बदला हमने लिया सोंडर्स को मार के। बहरों को सुनाने के लिए धमाकों की ही जरूरत होती है, भगवतगीता में कृष्ण ने भी यही किया था कौरवों के साथ। 

कुछ दिनों पहले

बटुकेश्वर मेरा दोस्त हम दोनों ने बम दागे अस्बेली हॉल में,हमारा आवाज लाशे बिछाना नहीं था,सिर्फ अंग्रेजों को ही नहीं पूरे हिन्दुस्थान को जगाना था। 

 ये मुल्क अपना है, हम उनकी गुलामी कब तक सहे। हम एक विचार फैलाना चाहते थे। और हम उसमे कामयाब भी हुए। अब सतलज की तरंगों में भी एक ही आवाज आएगी "इंकलाब ज़िंदाबाद"।

इसी आवाज के कारण,

कोलकाता अधिवेशन में पूर्ण स्वराज्य की मांग को ठुकराया गया था, अगले लाहौर अधिवेशन में मेरे साथियों ने पूर्ण स्वराज्य की मांग इतनी तेज करदी कि गांधीजी को पूर्ण स्वराज्य मांगना पड़ा। 

मुझे चार साल पहले रेलवे के पुलिस कोठरी में एक महीना बंद किया। पुलिस बोले खबरी हो जा। तुम्हे छोड़ देंगे, उपर से इनाम भी देंगे। उनकी बातें सुनकर में हस पड़ा

वतन के साथ गद्दारी....हरगिज नहीं।

हवा अभी बहुत तेज बह रही है। शायद मेरा यतेंद्र मौत के बाद फिर से मेरे दाएं बाएं घूम रहा है।मै भी आ रहा हूं पगले,तुझे कहां था मैंने पहले मै जाउंगा, पर गया तो तू पहले।

हमारी एक जेल की लड़ाई सफल रही यतेंद्र। जानवरों से बत्तर खाना दिया यहां।

जेल में ११६ दिन हमने कुछ नहीं खाया। सालो ने तुम्हारे फैफ़ड़ो में दूध भर दिया, २५ लोगो ने नाक से खाना ठो सा, तो तूने मक्खी खाके उलटी कर दी। 

हमारी यह हुकूमत के खिलाफ  आवाज कल पूरे देश भर में गूंजेगी। हर बच्चा रगो में शोला लेकर अंग्रेज को आंख दिखाएगा।

मै भगवदगीता का टुकड़ा पढ़ता हूं, विवेकानंद की जीवनी साथ रखता हूं। मैं नास्तिक आदमी हूं। मैंने बाकुनिन को पढ़ा है। मार्क्स लेनिन ट्रोटस्की को समझ चुका हूं। हमे सिर्फ आजादी जरूरी नहीं है, आजादी के बाद का हिन्दुस्थान जरूरी है। इस देश को धर्म का खतरा है, देश महान गरीबी में है, धर्म भूक मिटा नहीं सकता। किसान,मजदूर का शोषण मिटाना होगा।

मै नहीं जानता आजादी के बाद का हिन्दुस्थान कैसा होगा, जरूरी यह है कि हमे आजादी कैसे मिलती है। अगर यह सही तरीके से नहीं मिली तो अंग्रेज जाएंगे और सत्ता के ठेकेदार उसपर आकर बैठ जाएंगे। गरीब वर्ग टैक्स दे दे देकर खोकला होता जाएगा,अमीर और अमीर हो जाएगा। इस देश का गरीब गरीब ही रहेगा। देश भुक और सत्ता की आड़ में दहकता रहेगा।

वैसे में कभी भाव विभोर नहीं था, लेकिन मेरे सीने में एक दिल भी हैै जो सिर्फ आजादी केलिए धड़कता है। कवि और प्रेमी पागल होते है। मै वैसा ही हूं। एक लड़की है, मुझसे बेइंतहा मोहब्बत करती है। एक बार मिली थी मुझे किनारी बजार पे। बहुत फिकर करती है मेरी, बेबे बाबूजी को मेरी खैरियत पूछती है,मेरे लिए दुवाए मांगती है। पर कोई भी इश्क़ मेरे लिए मेरे मिट्टी से अधिक ऊंचा नहीं हो सकता।

मै गुलाम मुल्क में पैदा हुआ, और इश्क़ हमेशा आजाद होता है।

अगले जनम में उसके कंधे पर सोना चाहता हूं। मेरे सभी दोस्त बहोत बड़बोले है,खास कर ये चार्ली चैप्लिन का दीवाना राजगुरु, और ठहाके लगाने वाला ये सुखदेव, इनकी साथ जिंदगी की यह अंतिम यात्रा पर में जा रहा हूं।। बेबे और बाबूजी यही आस पास होंगे मेरे। ये दीवारें बहुत कमजोर है।

आजादी आंतक से नहीं आएगी,वो एक विचार से आएगी, और यही विचार इंकलाबी के रूप में इस फांसी के तख्त से पूरे हिन्दुस्तान फैलेगा। शाम हो चुकी है,हमे किसी भी वक्त फांसी हो सकती है।वो रस्सी हमारे लिए वंदनीय माला जिसे पहनती है वो इक विचार मे परिवर्तित हो जाएगी।

मै कोई धर्म नहीं मानता, इस लिए यह नहीं जानता कि मै कहां जाउंगा, मेरी आत्मा, मेरी रूह शायद यही मर जाएगी। मेरा एक इश्क अधूरा है,पूरा कर भी लिया होता पर वक्त सही नहीं है। और मेरी कोई इच्छाएं भी नहीं है,सिवाय इस आजादी के।

मै मौत को सजाना चाहता हु,और यही सही वक्त है।हिन्दुस्तान को एक नई दिशा दिखाने केलिए। 

एक लेनिन के किताब का पन्ना तो पढ़ लूं....क्या पता और एक नया विचार मिले।

इंकलाब ज़िंदाबाद🇮🇳

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न हुआ उनका अंत्य संस्कार

टुकड़े उनके सतलज में

भागी भागी आई बहना 

भगत को लगाया सीने से

रुकी हवा रोता पानी

कई मरे इस होनी में

पूरे हिन्दुस्तान का खून जिसने जगाया था

सारी दुनिया कापी उस दिन,जब फांसी उसे लगाया था।

मेरा इक दोस्त था जिससे मे बातें करता था।

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लेखन----- हरीश

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